पंडित और बकरी


             एक बार की बात है, एक पंडित ने तय किया कि वह बकरी की बलि चढ़ाएगा। उसने बकरी को एक जगह बांध और उसे मारने के लिए तैयार हो गया। जब पंडित बकरी को मारने ही वाला था तो वह पहले हंसी और पिफर रोने लगी।यह देख कर पंडित बड़ी उलझन में पड़ गया। उसने बकरी से इस विचित्रा से बर्ताव का कारण पूछा। बकरी ने उत्तर दिया, फ्कई जन्मों पहले, मैं भी तुम्हारी तरह एक पडित थी और मैंने एक बकरी की बलि दी थी। इसके.     


बाद अनेक जन्मों तक मेरी बलि चढ़ाई जाती रही है। आज, मैं आजाद हो जाऊंगी। यही सोच कर मुझे हंसी आई। पर तभी मुझे एहसास हुआ कि तुम भी वही पाप करने जा रहे हो। तुम्हें भी मेरी तरह कई जन्मों तक बलि चढ़ना होगा। तो तुम्हारे लिए मन में दुःख हुआ और मेरी हंसी आंसुओं में बदल गई।य्पंडित को एहसास हुआ कि बकरी सही कह रही थी। उसने बकरी को आजाद कर दिया और तय किया कि वह बलि चढ़ाने की बजाए पूजा-पाठ व ध्यान द्वारा भगवान को खुश करेगा। उसे समझ आ गया था कि किसी की बलि चढ़ाने से भगवान खुश नहीं होते।




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