मक्सिम गोर्की लिखित मां। भाग २

        


        मिखाइल ब्लासोव भी इसी प्रकार का जीवन व्यतीत करता था , वह अक्खड़ स्वभाव का मिस्तरी था । उसके चेहरे पर हर दम उदासी छायी रहती थी और उसकी घनी भवों के नीचे से उसकी छोटी - छोटी आँखें सन्देह और तिरस्कार के भाव से चमकती रहती थीं । वह फैक्टरी का सबसे अच्छा मिस्तरी और बस्ती का सबसे तगड़ा आदमी था । चूँकि अपने मालिकों से उसकी हमेशा ठनी रहती थी , इसलिए कमाता बहुत कम था । हर छुट्टी के दिन वह किसी न किसी को पीट देता । इसीलिए सभी लोग उसे नापसन्द करते थे और उससे डरते थे । उसकी पिटाई करने की भी कोशिश की गयी , मगर बेकार । व्लासोव जैसे ही लोगों को अपने पर झपटने के लिए आते देखता , वह कोई पत्थर या तख्ता , या लोहे की छड़ उठा लेता , टाँगें फैलाकर खड़ा हो जाता और चुपचाप अपने शत्रुओं की प्रतीक्षा करता । बालों से ढंकी हुई भुजाएँ और आँखों से लेकर गर्दन तक फैली घनी काली दाढ़ीवाला चेहरा दिलों में दहशत पैदा करते थे । लोगों को सबसे ज्यादा डर तो उसकी आँखों से लगता था ... छोटी - छोटी और पैनी , बर्मों की तरह लोगों को चीरती हुई उससे आँख मिलाने वाले को यही लगता कि वह किसी ऐसी दानवी शक्ति के सामने खड़ा है जो उस पर बिना किसी भय या दया के वार करने को तैयार है । खबरदार , जो आगे बढ़े , कुत्ते के पिल्लो , " वह गरजकर कहता और उसके बड़े - बड़े पीले दाँत उसकी दाढ़ी में चमक उठते । लोग डरकर पीछे हट जाते और जाते - जाते कायरों की तरह उस पर गालियों की बौछार करते जाते । " कुत्ते के पिल्लो ! " वह पीछे से बस इतना ही कहता और तिरस्कार से उसकी आँखों में खंजर की सी तेजी आ जाती । फिर वह अपना सीना तानकर उनका पीछा करता और ऊँची आवाज़ से ललकारता : ' आ जाओ , कौन मरना चाहता है ? " कोई भी मरना नहीं चाहता था । " 4 20 / माँ वह बहुत कम बोलता था और “ कुत्ते के पिल्ले " उसका तकियाकलाम था । वह पुलिसवालों , अफसरों और फैक्टरी में अपने मालिकों को भी यही संज्ञा देता । और बीवी को भी हमेशा कुतिया कहता । " अरी कुतिया , तुझे दिखायी नहीं देता कि मेरा पतलूट फट गया है ? " जब उसका बेटा पावेल चौदह बरस का था एक बार उसने उसके बाल खींचने की कोशिश की थी । मगर पावेल ने एक भारी - सा हथौड़ा उठाकर बस इतना कहा था : “ खबरदार जो हाथ लगाया ! " " क्या कहा ? " पिता ने पूछा और लम्बे तथा छरहरे बदन वाले बेटे की तरफ इस तरह बढ़ा जैसे बादल की छाया भोजपत्र के वृक्ष की तरफ बढ़ती है । " बहुत हो चुका , " पावेल बोला । “ अब मैं और बरदाश्त नहीं करूँगा । " और इतना कहकर उसने हथौड़ा तान लिया । पिता ने एक बार उसे घूरकर देखा और बालों से ढंके अपने हाथ पीठ के पीछे छुपा लिये । " अच्छी बात है , " उसने ज़रा हँसकर कहा और फिर एक गहरी आह भरकर बोला : “ अरे , कुतिया के पिल्ले .... " इसके कुछ ही समय बाद उसने अपनी घरवाली से कहा : " अब मुझसे कभी पैसे न माँगना , पावेल तुम्हारा पेट पालेगा । " " और तुम अपनी सारी कमाई शराब में उड़ाया करोगे ? " उसने पूछने का साहस किया । " तुझे इससे क्या मतलब है , कुतिया ! कोई रखैल रख लूंगा ! " रखैल तो उसने नहीं रखी , पर लगभग दो वर्ष , अपने मरने के दिन तक , उसने बेटे की ओर न तो कभी ध्यान दिया और न कभी उससे बात ही की । उसके पास एक कुत्ता था , उसकी ही तरह बड़े डील - डौल का और झबरीला । वह हर सुबह उसके साथ फैक्टरी तक जाता और शाम को फाटक पर उसकी प्रतीक्षा करता । व्लासोव छुट्टी का दिन एक शराबख़ाने से दूसरे शराबखाने में पीते - पिलाते ही काट देता । वह किसी से भी न बोलता और लोगों के चेहरों को ऐसे घूरकर देखता मानो किसी को ढूँढ रहा हो । और कुत्ता अपनी झबरी दुम हिलाता हुआ दिन - भर अपने मालिक के पीछे - पीछे लगा रहता । जब ब्लासोव नशे में चूर घर लौटता और खाने बैठता तो कुत्ते को भी प्याले से ही खिलाता । वह उसे न तो कभी गाली देता , न कभी पीटता , पर न कभी पुचकारता ही । खाना खा चुकने पर अगर उसकी बीवी को मेज साफ़ करने में ज़रा भी देर हो जाती तो वह तश्तरियाँ फर्श पर पटक देता और अपने सामने वोदका की बोतल रखकर दीवार के साथ पीठ टिकाकर बैठ जाता और फटी आवाज़ में आँखें मूंदकर तथा मुँह फाड़कर कोई उदासी - भरा गीत गाने लगता । करुण बेसुरी आवाजें उसकी दाढ़ी में उलझकर रह जातीं और उसमें फंसे हुए रोटी के टुकड़े नीचे गिर पड़ते ; गाते समय यह अपनी दाढ़ी और मूंछों पर हाथ फेरता रहता । उसके गीत के शब्द समझ में न आते और गीत की धुन भी जाड़ों में भेड़ियों के चिल्लाने की याद दिलाती । जब तक वोदका की बोतल चलती , वह गाता रहता और फिर वहीं बेंच पर लोट जाता या मेज पर सिर टिकाकर भोंपू बजने तक सोता रहता । कुत्ता भी उसी के बगल में लेटा रहता । हार्निया के कारण उसकी मृत्यु हुई वह पाँच दिन तक बिस्तर पर पड़ा तड़पता रहा ; उसका चेहरा काला पड़ गया था , उसकी आँखें बन्द रहती थीं और वह अपने दाँत पीसता रहता था । कभी - कभी वह अपनी बीवी से कहता : " मुझे थोड़ा - सा संखिया दे दे ... ज़हर दे दे ... " डॉक्टर ने पुलटिस बाँधने को कहा , पर साथ ही यह भी जोड़ दिया कि मिखाइल का आपरेशन ज़रूरी है और उसे उसी दिन अस्पताल ले जाया जाये । मिखाइल ने उखड़ी - उखड़ी साँसें लेते हुए कहा , " भाड़ में जाओ तुम ! मैं तुम्हारी मदद के बिना ही मर जाऊँगा , कुत्ते के पिल्ले ! " जब डॉक्टर चला गया और उसकी बीवी ने आँखों में आँसू भरकर आपरेशन करवा लेने की विनती की तो उसने उसकी तरफ़ घुसा तानकर कहा : ' अच्छा हो गया तो तुम्हारी ही ज़्यादा शामत आयेगी ! " सुबह जब फैक्टरी का भोंपू बज रहा था , उसकी मृत्यु हुई जब वह ताबूत में लेटा हुआ था , तो उसका मुँह खुला था और भवें गुस्से से तनी हुई थीं । उसकी बीवी , बेटे , कुत्ते , दनीला वेसोवश्चिकोव ( पुराना शराबी और चोर जिसे फैक्टरी से निकाल दिया गया था ) और बस्ती के कुछ भिखमँगों ने उसे दफन किया । उसकी बीवी थोड़ा रोयी , सो भी चुपके - चुपके । पावेल बिल्कुल नहीं रोया । जनाजा ले जाते वक्त रास्ते में मिलने वाले बस्ती के लोगों ने रुककर सीने पर सलीब का निशान बनाया और बोले : " पेलागेया तो बहुत ही खुश होगी कि यह चल बसा । " दूसरों ने सही करते हुए कहा , “ चल नहीं बसा , कुत्ते का दम निकल गया ! " ताबूत को दफन करके लोग तो चले गये , पर कुत्ता वहीं ताजी खुदी हुई मिट्टी पर चुपचाप बैठा कब्र को सूंघता रहा । कुछ दिन बाद किसी ने कुत्ते को मार डाला ..

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